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Justice For Mahesh Kumar Verma

Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....

Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015

Sunday, August 24, 2008

स्त्री शिक्षा में बाधा क्यों


आज हमारे पुरुष प्रधान समाज में स्त्री जाति को उपेक्षित भाव से देखा जाता है। लड़का-लड़की में अंतर व लड़की को उपेक्षित भाव से देखना उसी समय से प्रारंभ हो जाता है जब लड़की अपने माँ के कोख से जन्म लेती है। जब लड़का जन्म लेता है तो लोग खुशियाँ मनाते हैं और वहीँ जब लड़की जन्म लेती है तो तो एक मायूसी छा जाती है; जैसे कि लड़की को जन्म लेने के बाद कोई विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा हो।

इतना ही नहीं, जन्म के बाद भी लड़का व लड़की के पालन-पोषण में काफी अंतर देखने को मिलता है। जहाँ लड़का के भोजन व रहन-सहन का खास ख्याल रखा जाता है वहीँ लड़की के संबंध में ऐसा नहीं होता है। जहाँ लड़का के पढाई-लिखाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है वहीँ लड़की को इस मायने में नजर अंदाज कर दिया जाता है। कितने लड़की को तो स्कूल जाने का भी सौभाग्य नहीं मिल पाता है। कोई लड़की यदि पराया भी तो मिडिल स्कूल या हाई स्कूल के पढ़ाई के बाद उसका पढ़ाई बंद हो जाता है और यदि उस लड़की के मन में और भी पढने की ईच्छा हो तो उसकी यह ईच्छा चूर-चूर हो जाता है और उसकी प्रतिभा भी कुंठित हो जाती है।



पर सोचें कि हम लड़का व लड़की में इतना भेद-भाव क्यों करते हैं? क्या लड़की को इस समाज में रहने व पढ़ने तथा आगे बढ़ने व कुछ करने का अधिकार नहीं है? .......... सोचने पर इसका एक यही कारण स्पष्ट होता है कि हम यह मानते हैं कि लड़की तो पराया घर जाएगी इस पर इतना ध्यान व खर्च क्यों किया जाए? धन धन हाँ, माँ-बाप अपने इसी सोच के कारण अपने बेटी का सही ढंग से न तो पालन-पोषण करते हैं न तो सही दंग से शिक्षा ही देते हैं। क्योंकि वे मानते हैं की बेटी पराया धन है इसे ससुराल में रहना है तो फिर इसके पीछे इतनी खर्च क्यों करूँ? ............ फिर एक यह भी सोच रहती है की लड़की को ज्यादा या उच्च शिक्षा देंगे तो फिर हमें उस अनुसार उसके लिए उच्च स्तर का वर ढूंढना होगा जिसमें मुझे दहेज के रूप में काफी धन देना होगा। .................... इस प्रकार दहेज समस्या के कारण भी कितने माँ-बाप अपनी बेटी को विशेष नहीं पढाते हैं। ......... पर हमें यह समझना चाहिए की हमारी यह सोच किसी भी अर्थ में उचित नहीं है। दहेज के डर से बेटी को न पढाना हमारी मुर्खता है और यह हमारी संकीर्ण व नीच विचारधारा को ही दर्शाता है। ............... इस प्रकार के सोच रखने वाले को यह समझना चाहिए कि यदि हम बेटी को उचित शिक्षा दें और पढ़ा-लिखा कर आगे बढाएँ तो इसमें कोई हर्ज नहीं है। यदि लड़की पढ़-लिखकर नौकरी या कोई रोजगार करती है तो इसमें हर्ज क्या? ऐसी स्थिति में ऐसे लड़के भी आसानी से मिल सकते हैं जो बिना दहेज के या कम दहेज के उससे शादी करे। और यदि ऐसा नहीं होता है तो यदि लड़की पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ी है, आत्मनिर्भर है तो इसमें हर्ज क्या?............... इस प्रकार हमें यह समझना चाहिए कि बेटी को पढ़ा-लिखा कर आगे बढ़ाने से दहेज समस्या बढती नहीं है बल्कि बहुत हद तक दहेज समस्या का समाधान होता है। ................

अतः हमारी समाज को अपनी इस नीच सोच को बदलना चाहिए व बेटा-बेटी में फर्क न कर लड़का-लड़की दोनों को सही ढंग से पालन-पोषण व उचित शिक्षा देना चाहिए।

हाँ, यह बात भी सही है कि धीरे-धीरे हम जागरूक हो रहे हैं तथा अब कितने परिवारों में बेटी को भी उच्च शिक्षा दी जा रही है। पर इस कार्य में अभी हम बहुत ही पीछे हैं, हमें और आगे बढ़ना होगा।

अपने नीच सोच को हटाना होगा।
बेटा-बेटी में अन्तर पाटना होगा॥
बेटी को आगे बढ़ाना होगा।
जिम्मेदार माँ-बाप का फर्ज निभाना होगा॥

Saturday, August 23, 2008

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर सबों को ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर सबों को ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ

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गीता में भगवान श्री कृष्ण ने हमें हमेशा अपने कर्म करते रहने की ही शिक्षा दिए हैं। अतः श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व को हमें यों ही नहीं बिताना चाहिए बल्कि इस अवसर पर हमें अपने कर्म को करते हुए अन्याय के विरुद्ध लड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित होना चाहिए।

Sunday, August 17, 2008

दिल का जख्म


कोई आए मेरे दिल का दर्द सुन ले
कोई तो दिल के जख्म पर मलहम लगा दे

है जख्म ये जो भरती नहीं
है इसकी दवा जो मिलती नहीं
कोई आए मेरे दिल का दर्द सुन ले
कोई तो दिल के जख्म पर मलहम लगा दे


क्या सुनाऊं दिल का हाल
पापियों ने किया इसे बेहाल
थी अरमां आसमां छूने को
पर ऊँचाई से उसने ऐसा धकेला
कि दिल टुकड़े-टुकड़े हुए
दिल टुकड़े-टुकड़े हुए
किसी तरह टुकड़े को जोड़कर
नया जीवन जीना चाहा
पर आगे के राह में
उसने ऐसा रोड़ा लगाया
कि दिल का जख्म बढ़ता ही गया
दिल का दर्द बढ़ता ही गया
कोई आए मेरे दिल का दर्द सुन ले
कोई तो दिल के जख्म पर मलहम लगा दे


बहुत कोशिश की दिल के जख्म को भरने की
पर नहीं किया था रत्ती भर भी सद्व्यवहार उसने
किया था मेरे दिल पर आघात ही आघात उसने
मेरे दिल का जख्म बढ़ता ही गया
दिल का जख्म बढ़ता ही गया
मुझसे उसने दुनियाँ का सब कुछ छीन लिया
नहीं छोड़ा उसने कुछ भी मेरे लिए
सिवाय दिल के जख्म के
सिवाय दिल के जख्म के
कोई आए मेरे दिल का दर्द सुन ले
कोई तो दिल के जख्म पर मलहम लगा दे

कोई तो दिल के जख्म पर मलहम लगा दे
कोई तो दिल के जख्म पर मलहम लगा दे

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Friday, August 15, 2008

आया है स्वतंत्रता दिवस

सबों को स्वतंत्रता दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ।
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आया है स्वतंत्रता दिवस अपना धर्म याद कराने को।
भूल न जाना तुम हिंदुस्तान के मज़हब को॥

हो जाओ तैयार सब कुछ न्योछावर करने को।

सहना होगा थोड़ा कष्ट भारतमाता के लाज बचाने को॥

आया है स्वतंत्रता दिवस अपना धर्म याद कराने को।

आया है स्वतंत्रता दिवस अपना धर्म निभाने को॥

Thursday, August 14, 2008

सबसे न्यारा सबसे प्यारा

सबसे न्यारा सबसे प्यारा
भारत देश है हमारा
हर बच्चे यहाँ के हैं सच्चे
इनको किसी का डर नहीं
इनके मन में कोई पाप नहीं
बस अपना कार्य करना है
जीवन में आगे बढ़ना हैं
अपना नाम कमाना है
भारत को सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाना है
बस मत रोको इन्हें आगे बढ़ने में
मदद करो इन्हें आगे बढ़ने में
सहायता करो इन्हें बढ़ने में
मत लगने दो इनपर किसी भी प्रकार का धब्बा
इसी पर है देश की आशा
गर चुक गए तुम तो मिलेगी निराशा ही निराशा
बस यही है तुमसे आशा
मदद करो इन्हें बढ़ने में
और हाथ बढाओ देश को सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाने में
सबसे न्यारा सबसे प्यारा
भारत देश है हमारा

Wednesday, August 13, 2008

भारतमाता के हम वीर सपूत



भारतमाता के हम वीर सपूत
नहीं झुकेंगे, नहीं हारेंगे
दुश्मन चाहे लाख आए
अपने कर्तव्य को नहीं भूलेंगे
अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे
अन्याय को नहीं स्वीकारेंगे
भारतमाता के हम वीर सपूत
नहीं झुकेंगे, नहीं हारेंगे

आगे बढ़ते रहे हैं
आगे ही बढ़ते रहेंगे
अन्याय व भ्रष्टाचार को
इस देश से निकाल फेकेंगे
सच्चाई व ईमानदारिता के समाज हम बनाएँगे
भारतमाता के हम वीर सपूत
नहीं झुकेंगे, नहीं हारेंगे

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भारतमाता के हम वीर

Wednesday, August 6, 2008

स्वतंत्रता दिवस नहीं शोक दिवस

मना रहे हैं स्वतंत्रता की ६१ वीं वर्षगाँठ
पढ़ा रहे हैं सदाचारिता की पाठ
कर रहे हैं आपस में गरीबों के राशि के बंदरबाँट
यही है भारतीय स्वतंत्रता की वर्षगाँठ
स्वतंत्रता की ६१ वीं वर्षगाँठ
क्यों मनाऊं मैं स्वतंत्रता की वर्षगाँठ
आज मेरा देश स्वतंत्र है
पर इस देश के निवासी गुलाम हैं
भ्रष्टाचार व अन्याय के गुलाम
जुल्म व शोषण के गुलाम
घूसखोरी व अत्याचार के गुलाम
एक नहीं दो नहीं सभी हैं इनके गुलाम
यही है मेरे देश की पहचान
यहाँ किसी को बोलने का भी अधिकार नहीं है
यहाँ किसी को न्याय पाने का भी अधिकार नहीं है
नहीं होती है यहाँ आम जन के साथ न्याय
आम जन के लिए तो न्याय माँगना भी गुनाह हो जाता है
यदि माँगा वह न्याय और नहीं दिया पैसा
तो रक्षक भी उसका दुश्मन हो जाता है
क्योंकि यहाँ पैसे की ही बात सुनी जाती है
व पैसे की ही जीत होती है
एक नहीं दो नहीं नीचे से ऊपर तक सभी जगह है घूसखोरी व अत्याचार
इसे बंद करने के लिए नहीं है कोई सरकार
होती रही है होती रहेगी अन्याय व अत्याचार
हमें न्याय पाने का भी नहीं है अधिकार
हमें सच बोलने का भी नहीं है अधिकार
तो फिर क्यों मनाऊं मैं स्वतंत्रता दिवस
आज सच्चाई व इमानदारी का नहीं है नामों निशान
भारत में धर्म की कोई नहीं है पहचान
चूँकि भारत में सच्चाई, ईमानदारी व धर्म सभी का हो गया है नाश
तो क्यों न स्वतंत्रता दिवस के स्थान पर शोक दिवस ही मनाया जाए

रचनाकार : महेश कुमार वर्मा

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स्वतंत्रता की ६१ वीं वर्षगाँठ

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