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Justice For Mahesh Kumar Verma

Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....

Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015

Friday, February 17, 2017

जाति-पाति हटाना है, बेहतर समाज बनाना है

नमस्कार।
कुछ दिन पहले 14 फरवरी 2017 को मैं 4 दिन के एक नवजात शिशु के लिए रक्तदान किया। इससे पहले भी मैं 2 बार जरूरतमंद मरीज के लिए रक्तदान कर चूका हूँ। यह मेरा तीसरा रक्तदान था।
कब किसको किस तरह की जरुरत पड़ जाती है यह नहीं कहा जा सकता है। खुन के कमी के कारण, ऑपरेशन में, दुर्घटना में या अन्य बीमारी में लोगों को कई बार अपने या परिजन के जीवन बचाने के लिए दूसरे से रक्त यानि खून लेना पड़ता है। और यह रक्त ऐसी चीज है जो किसी व्यक्ति के शरीर में ही बनता है और वही उसके शरीर से लेकर फिर मरीज के शरीर में दिया जाता है। तब मरीज की जान बचती है। रक्त कोई प्रयोगशाला या laboratory में तैयार नहीं किया जाता है। जिस कारण से रक्त की जरुरत पड़ने पर हमें किसी दूसरे व्यक्ति के रक्त पर ही निर्भर रहना पड़ता है। फिर यह बात भी है कि रक्त लेने के लिए हम जो doner यानी रक्तदाता से रक्त लेते हैं वही रक्त मरीज के शरीर में नहीं चढ़ाया जाता है। बल्कि रक्तदाता द्वारा लिया गया रक्त blood bank में और भी कई process के लिए रख लिया जाता है और मरीज के लिए blood bank से वह रक्त दिया जाता है जो कि ब्लड बैंक में पहले से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिया गया होता है।
इस प्रकार मरीज को किस व्यक्ति का यानि किस व्यक्ति से लिया गया रक्त चढ़ाया गया यह यह मरीज या परिजन को नहीं पता होता है। यह भी नहीं पता होता है कि मरीज को दिया जाने वाला रक्त किस जाति (Cast) के व्यक्ति के शरीर से लिया गया है। यानि मरीज को यह रक्त चढ़ाने के बाद यह पता नहीं रहता है कि उसके शरीर में किस जाति के व्यक्ति का खून दौड़ रहा है।
मैं कहना यह चाहता हूँ कि जीवन बचाने के लिए जब रक्त की जरुरत पड़ती है तब हम किसी भी जाति के व्यक्ति के रक्त लेते हैं और वह फिर मुझे मेरे शरीर में दौड़ता है और मेरी जान बचाता है। तब जब यहाँ रक्त लेते समय हम जाति को नजरअंदाज कर देते हैं या यहाँ जाति नहीं मानते हैं तब फिर अन्य स्थानों पर, शादी-व्याह में हम जाति क्यों मानते है? जान बचाने के लिए हम दूसरे जाति के व्यक्ति का रक्त अपने शरीर में दौड़ा सकते हैं तो फिर ख़ुशी व सुखी जीवन जीने के लिए हम दूसरे जाति के व्यक्ति से शादी क्यों नहीं कर सकते हैं? जरुरत पड़ने पर जब रक्त लेने में हम जाति नहीं मानते हैं तो शादी-व्याह या अन्य कई स्थानों पर हम जाति-पाति क्यों मानते हैं?
क्या नवजात शिशु को दूसरे जाति के व्यक्ति का रक्त चढ़ाकर जान बचाना गलत है? क्या अन्य किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति या मरीज को किसी भी अन्य जाति के व्यक्ति का रक्त चढ़ाना गलत है? यदि इस प्रकार दूसरे जाति का रक्त चढ़ाकर अपने परिजन या किसी का जान बचाना गलत नहीं है और यहाँ हम दूसरे जाति के रक्त भी स्वीकार कर सकते हैं तो शादी-व्याह व अन्य स्थानों पर हम जात-पात क्यों मानते हैं?
क्यों नहीं समाज से जात-पात को ही पूर्ण रूप से हटा दिया जाए? क्यों नहीं पूर्ण रूप से जाति आधारित हरेक तरह के व्यवस्था के साथ-साथ जाति को ही हटा दिया जाए?
क्या समाज से जात-पात पूर्ण रूप से बंद करना सही नहीं होगा?
*उठो, जागो और बेहतर समाज का निर्माण करो।*
*जाति-पाति को पूर्ण रूप से समाप्त करो।।*
*मेरा एक ही जाति है मानव जाति और मानवता ही मेरा धर्म।*
*इस सच्चाई को स्वीकारो व बेहतर समाज का निर्माण करो।।*
*हम सुधरेंगे युग सुधरेगा।*
*हम बदलेंगे युग बदलेगा।।*
*बेहतर समाज निर्माण में आगे बढ़ना है।*
*जाति-पाति को जड़ से मिटाना है।।*
*आएं हम यह प्रण करें कि हम मानव हैं मानव ही रहेंगे।*
*नहीं मानेंगे कोई अन्य जाति और नहीं करेंगे कहीं भी जाति के आधार पर भेदभाव।।*
*बेहतर समाज बनाना है जाति-पाति हटाना है।।*
*बेहतर समाज बनाना है जाति-पाति हटाना है।।*
- महेश कुमार वर्मा
17.02.2017
पटना

2 comments:

Kavita Rawat said...

सार्थक प्रस्तुति ..

Anonymous said...

तुम्‍हारे सभी पोस्‍ट पर कमेंट आये लेकिन तुमने ये क्‍या पोस्‍ट डाली कि इस पर सिर्फ दो कमेंट आये हैं ये है हमारे देश की सच्‍चाई और कमेंट आयेगें भी तो तुम्‍हारी इस बात से कोई समर्थन नहीं करेगा और समर्थन करेगा भी तो उसका पालन नहीं करता होगा ।

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